फोटोग्राफी का शौक बन गया पैशन
बनवारी लाल सिंगला ने फोटोग्राफी को न केवल अपना प्रफेशन बनाया बल्कि उसे अपना जुनून भी बना लिया। उनके इसी जुनून की वजह से शहर के लोग जब कभी गुडगांव में हुए पुराने आयोजनों की याद ताजा करना चाहते हैं, तो सीधे उनके पास चले आते हैं। ओल्ड गुडगांव के सिंगला पिछले साठ सालों से फोटोग्राफी से जुडे हुए हैं। उनके पास न केवल पुराने फोटो का अच्छा खासा कलेक्शन है बल्कि पुराने कैमरों का भी काफी अच्छा संग्रह है।
यादों का एल्बम
शहर के ज्यादातर खूबसूरत लम्हों की तस्वीरें उनके कैमरे की कारगुजारी की गवाह हैं। बीते जमाने के तमाम कलाकारों की स्टाइल को बनवारी लाल सिंगला ने अपने फोटो कलेक्शन के जरिए संभालकर रखा है। सिंगला के पास मुमताज की सन 1962 की तस्वीरें, देवानंद, बलराज सहानी, निशी, दारा सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, जवाहर लाल नेहरू आदि की जवानी की खूबसूरत तस्वीरें हैं। इसके अलावा उनके पास गुडगांव की बदलती सूरत और बढती उम्र की गवाही देती तस्वीरें भी हैं। सिंगला का कहना है कि उन दिनों डिजिटल कैमरे का चलन नहीं था और रील कैमरे पर फोटोग्राफी होती थी। अधिकतर फोटोग्राफर ब्लैक एंड वाइट फोटो ही खींचते थे। अगर कोई रंगीन फोटो खींचता था तो उसकी रील को धुलवाने के लिए मुंबई या इंग्लैंड जाना होता था। सिंगला ने बताया कि शुरुआत में उन्होंने फोटोग्राफी को शौकिया तौर पर शुरू किया लेकिन जल्द उन्हें यह रास आ गई।
कैमरे की पीढियों का भी संग्रह
बनवारी लाल सिंगला ने न केवल तस्वीरों को संजोया है बल्कि उनके पास कैमरों का भी संग्रह है जिसे वे अभी तक संभाले हुए हैं। सिंगला ने बताया कि सबसे पहले उन्होंने फील्ड या ग्रुप कैमरे पर काम करना शुरू किया। इस कैमरे में जितना बडा फोटो होता था , उतना ही बडा निगेटिव भी होता था। यह बिना बिजली के चलता था। इसके बाद टीएआर कैमरा आया। यह कैमरा उस समय सबसे महंगा होता था और इसमें दो लैंस होते थे। एक लैंस फोकस करने के लिए और दूसरा फोटोग्राफी के लिए। यह कैमरा ब्लैक एंड वाइट फोटो लेता था। टीएलआर कैमरा 1995 के बाद आउट ऑफ फोकस हो गया। टीएलआर के बाद 35 एम एसएलआर कैमरा आया। यह कैमरा रील से चलता था। साल 2000 के बाद से यह कैमरा भी फ्रेम से बाहर हो गया। उनके पास पोलेराइड कैमरा भी है। यह कैमरा पासपोर्ट साइज फोटो खींचने के लिए प्रयोग होता था। हालांकि 1995 के बाद यह कैमरा भी चलन से बाहर हो गया।
बदल गए फोटोग्राफी के रंग
सिंगला का मानना है कि वक्त के साथ - साथ फोटोग्राफी का स्वरूप काफी बदल गया है। पहले ब्लैक एंड वाइट फोटो खींचने के बाद उसमें हाथ से कलर भरे जाते थे और फोटो को फाइनल टच दिया जाता था। हालांकि आजकल यह सारा काम फोटोशॉप में ही हो जाता है।
यादगार लम्हा...
... और वो तस्वीर मैंने दोस्त को दे दी , आज भी इसका मलाल है
मैंने सबसे पहली फोटो अपने दोस्त के कैमरे से लेडी लॉर्ड माउंटबेटन की खींची थी। उस समय मैं कॉलेज का छात्र था और वे राजस्थान में अजमेर आई हुईं थीं। उस समय उनका खासा आकर्षण था और भारत ही नहीं देश - विदेश में भी लोग उनकी एक झलक पाने को लालायित रहते थे। जैसे ही मुझे पता चला कि एडविना भी आ रही हैं , मैंने अपने दोस्त का कैमरा लिया और वहां पहुंच गया। काफी भीड - भाड की वजह से उनके पास तक जाने के लिए काफी मशक्कत करनी पडी। उन दिनों कैमरों में जूम का इतना ज्यादा इस्तेमाल नहीं होता था। मैंने काफी पास से उनका फोटो खींचा , यह मेरा सबसे पहला फोटो था। फोटो काफी अच्छी आई थी और सारे कॉलेज में चर्चा थी कि मैंने बहुत बडा काम किया है।
हालांकि दोस्त का कैमरा होने की वजह से वह फोटो उसे ही देना पडा जिस कारण यह फोटो आज मेरे पास नहीं है। फोटो के मेरे पास न होने की टीस मुझे आज भी है। लेकिन उस एक फोटो ने मेरे फोटोग्राफर बनने का मार्ग प्रशस्त कर दिया और मैंने उसी समय ठान लिया कि अपना खुद का कैमरा खरीदना है। कुछ पैसे पिताजी से लिए और कुछ खुद के जोडे हुए पैसे मिलाए और इस घटना के कुछ दिनों बाद ही नया कैमरा खरीद लिया। बस फिर उसके बाद फोटोग्राफी का ऐसा जुनून चढा कि आज तक पीछे मुडकर नहीं देखा।