जनकवि से तात्पर्य है जो जन के अनुभव रूपी भव को साहित्यिक जन ही नहीं वरन् आम जन की वाणी में जन के हितार्थ ही प्रयोग करे। हिन्दी साहित्य के इतिहास में जनकवि की पदवी से विभूषित कविगणों की सूची अधिक लम्बी नहीं है।
जनकवि हरीश भादाणी उन विरल कवियों में शुमार है जिन्हें समूचा साहित्य संसार इस पदनाम के साथ स्वीकार करता है।
११ जून १९३३ के दिन बीकानेर में जन्मे हरीश भादाणी का बचपन असामान्य वातावरण में गुजरा । क्योंकि जन्म के बाद पिता ने सन्यास ग्रहण कर लिया और माता का देहान्त हो गया। आपकी प्राथमिक शिक्षा हिन्दी, महाजनी, संस्कृत के माध्यम से घर पर हुई है।
शयवादियों - समाजवादियों की संगत के साथ हवेली से सडक तक की यात्रा में आधे एम. ए. उत्तीर्ण भादाणी आरम्भ से ही पत्रकारिता आन्दोलन, जुलूष, नारे, थाने-जेल से किसी न किसी सामाजिक अत्याचार के खिलाफ लडते रहे हैं।
नगर बीकानेर से आपने साहित्यिक जगत की प्रतिष्ठित पत्रिका ’वातायन‘ (१९६० से १९७४) का संपादन किया। इसके अतिरिक्त जयपुर बम्बई कोलकाता से प्रकासित ’कलमे‘ (त्रैमासिक) से भी आपका जुडाव रहा है। अब तक आफ हिन्दी में १६ काव्य संग्रह व ४ राजस्थानी काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। अनौपचारिक शिक्षा पर २०-२५ पुस्तकें लिख चुके भादाणी को अब तक निम्न सम्मान भी प्राप्त हो चुके हैं।
- मींरा पुरस्कार - राजस्थान साहित्य अकादमी।
- प्रियदर्शिनी अकादमी से सम्मान प्राप्त।
- परिवार अकादमी महाराष्ट्र से सम्मानित।
- राहुल सांस्कृत्यापन सम्मान ः पश्चिम बंगाल अकादमी
- बिहारी सम्मान - के.के.बिडला (फाऊण्डेशन सम्मान)
पौवत्यि साहित्य के जिज्ञासु भादाणी इन दिनों ऋग्वेद की श्रय्याओं का राजस्थानी रूपान्तरण करने में लगे है।
सम्फ : हरीश भादाणी
छबीली घाटी, बीकानेर
दूरभाष - ०१५१-२५३०९९८
मोबाइल - ९४१३३१२९३०