कुमारा संगाकारा के नेतृत्व में श्रीलंकाई चीतों का दल ताल ठोंक चुका है और भारत में अपना रिकॉर्ड सुधारने को आमादा है। भारत में पहला टेस्ट जीतने की भूख के बाद उन्होनें भारतीय कप्तान को श्रेष्ठ प्रदर्शन की चुनौती दे डाली है। दूसरी और कंगारूओं के सामने नतमस्तक होने के बाद भारत को भी धरेलू दर्शकों के सामने अपनी छवि सुधारनी है। मगर प्रश्न यह है कि कंगारूओं के सामने ढेर होने के बाद भारतीय शेर कहां तक सफल हो पाएंगें।
आस्ट्रेलिया के सामने दो वनडे क्रमशः तीन और चार रनों के मामूली अंतर से गंवाने के बाद उनकी संकट के क्षणों में संघर्ष न कर पाने की कमजोरी फिर सामने आ गई। कंगारूओ के खिलाफ खेले गए पांचवे वनडे में मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर की 175 रनों की साहसिक पारी भी बेरंग हो गई। छठे मैच में पूरी टीम के मूक समर्पण के बाद श्रृंखला में भारतीय चुनौती समाप्त हो गई। यूं देखें तो पहले पंद्रह मिनट में महज 27 रन पर पांच विकेट खो देने के साथ ही मैच भारत की पकड से दूर जाता रहा लेकिन रवीन्द्र जडेजा और प्रवीण कुमार ने भारत की इज्जत रखी और स्कोर को असम्मानजनक स्थिति से बाहर निकालने का प्रयास किया। फिर भी अनुभवहीन आस्ट्रेलियाई एकादश के सामने अबतक की सबसे शर्मनाक हार की जिम्मेदारी पूरी टीम को उठानी होगी। वैसे देखें तो यह श्रृंखला से कहीं अधिक बादशाहत की जंग थी जिसमें आस्ट्रेलिया का पलडा भारी रहा। उन्होनें खेल के हर क्षेत्र में भारत से इक्कीस प्रदर्शन किया और रकिग में प्रथम स्थान प्राप्त किया और स्पष्ट कर दिया कि उनकी गद्दी पर कब्जा अभी ज्यादा आसान नहीं है। ष्
कंगारूओं के खिलाफ खेली गई एकदिवसीय श्रृंखला की एकमात्र उपलब्धि सचिन तेंदुलकर का सत्रह हजारी बनना रही। 15 नंबर को वनडे खेलने के 20 वर्ष पूरे करने वाले सचिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर के तीस हजार रन बनाने से कुछ कदम की दूरी पर खडे हैं और उन्होंने अब तक की श्रेष्ठ पारियों में से एक पारी खेलकर दर्शा दिया कि उसमें अभी बहुत क्रिकेट बाकी है। दूसरी और आस्ट्रेलिया द्वारा कूटनीतिक रवैया न अपनाना भी बेहद आश्चर्यजनक था। यह संभवतया पहला अवसर है जब आस्ट्रेलियाई खिलाडी विवादों में छाए बिना श्रृंखला का सेहरा अपने सिर बांधकर जा रहे हैं। इसका कारण साइमंड्स जैसे विवादप्रिय खिलाडयों का एकादश में शामिल न होना भी हो सकता है।
कुछ भी हो भारत कंगारूओं के सामने कहीं भी टिकता नहीं दिखा और सीरिज गंवा चुका है। अब धोनी के धुरंधरों के श्रीलंकाई चीतों के सामने अपनी चुनौती पेश करनी है जो तीन टेस्ट, दो टी-20 और पांच एकदिवसीय मैच खेलने भारत पहुंच चुके हैं। उनके साथ दो एम फेक्टर मुरलीधरन और मेंडिस है तो संगाकारा जैसे बल्लेबाज और एंजेलो मैथ्यूज जैसे ऑलराउण्डर हैं जिन पर संगकारा विश्वास जता चुके हैं। दूसरी और भारतीय मजबूती मानी जाने वाली बल्लेबाजी का ताश के पत्तों की तरह बिखराब और गेंदबाजी का प्रदर्शन शबाब पर न होना भी चिंताजनक है। भारतीय पिचों पर हरभजन की फिरकी काम न करना ज्यादा सोचनीय है। श्रीलंका के खिलाफ टेस्ट श्रृंखला के लिए भारतीय टीम में आमूलचूल परिवर्तन किए गए हैं। सचिन, द्रविड, लक्ष्मण, युवराज, धोनी,गंभीर और सहवाग जैसे बडे नाम टीम में शामिल हैं तो जहीर और श्रीसंत की वापसी से भी भारतीय टीम को मजबूती मिलेगी।
कुल मिलाकर श्रीलंकाई चीतों का सामना करने के लिए टीम भावना का प्रदर्शन करना होगा। खेल के हर क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रदर्शन ही टीम को विजय रथ पर सवार करवा सकता है। वैसे श्रीलंका का दल भी अनुभवहीन है और उनके पांच खिलाडयों के अलावा किसीको भारतीय पिचों का अनुमान नहीं है लेकिन फिर भी उनकी जीत की भूख मुकाबले को रोचक बना सकती है।
- हरि शंकर आचार्य, सहायक जनसंफ अधिकारी, श्रीगंगानगर