भाद्रपद कृष्ण पक्ष की एकादशी प्रबोधिनी, जया, कामिनी तथा अजा नाम से विख्यात है। इस दिन भगवान विष्णुजी की पूजा की जाती है।रात्रि जागरण तथा व्रत रखने से सारे पाप नष्ट हो जाते है ।
कथाः पुराणो में वर्णन आता है। की एक बार सत्यवादी राजा हरिशचन्द्र ने स्वप्न में ऋषि विश्वामित्र को अपना राज्य दान कर दिया है अगले दिन ऋषि विश्वामित्र दरबार में पहुँचे जो राजा ने उन्हे अपना सारा राज्य सौप दिया है। ऋषि ने उनसे दक्षिणा की पाँच सौ स्वर्ण मुद्राए और माँगी दक्षिणा चुकाने के लिए राजा को अपनी पत्नी एव पुत्र तथा स्वय को बेचना पडा। राजा हरिशचन्द्र को एक डोम ने खरीदा था । डोम ने राजा हरिशचन्द्र केा श्मशान में नियुक्त करके मृतको के सम्बन्धियो से कर लेकर शव दह करने कार्य सौपा था उनको जब यह कार्य गौतम ऋषि से भेंट हो गई राजा ने उनसे अपने ऊपर बीती। सब बाते बताई तो मुनि ने उन्हे इसी अजा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। राजा ने यह व्रत करना आरम्भ कर दिया। इसी बीच उनके पुत्र रोहिताश का सर्प के डसने से स्वर्गवास हो गया जब उसकी माता अपने पुत्र को अन्तिम संस्कार हेतु श्मशान पर लायी जो राजा हरिशचन्द्र ने उससे श्मशान का कर चुकने के लिये कुछ भी नही था। उसने चुन्दरी का आधा भाग देकर श्मशान का कर चुकाया तत्काल आकाश में बिजली चमकी और प्रभु प्रकट होकर बोले,”महाराज! तुमने सत्य को जीवन में धारण करके उच्चतम आदर्श प्रस्तुत किया है। तुम्हारी कर्तव्य निष्ठा धन्य है। तुम इतिहास में सत्यवादी राजा हरिशचन्द्र के नाम से अमर रहोगे“।भगवकत्कृपा से रोहित जीवित हो गया । तीनो प्राणी चिरकाल तक सुख भोगकर अन्त में स्वर्गवास को चले गए।