बीकानेर एक ऐसा शहर जहाँ परम्पराओं का निवास है, जहाँ के लोग अपनी संस्कृति और अपने रिवाजों के लिए जाने जाते हैं और उन्हीं रिवाजों और परम्पराओं में से एक है बीकानेर में रहने वाले पुष्करणा समाज के लोगों का सामूहिक विवाहोत्सव - सावा। जी हाँ, सावा परम्परा!
सावा जिसमें पुष्करणा समाज की सैकडों शादियाँ एक ही दिन सम्पन्न होती है। इस परम्परा के अंतर्गत के समाज के लोग एक दिन निश्चित कर अपने बेटे बेटियों की शादियाँ उसी दिन सम्पन्न कर देते हैं। इस परम्परा में शादी के सारे कार्यक्रम एक निश्चित कार्यक्रम के अनुसार सम्पन्न किए जाते हैं और उस दिन ऐसा लगता है जैसे सारा शहर ही मण्डप हो गया है और शहर के लोग बाराती। जहाँ देखो वहाँ दूल्हा, दूल्हन और बारातें ही नजर आती हैं।
यह परम्परा बीकानेर के पुष्करणा ब्राह्मण समाज में आज से नहीं बल्कि करीब सवा चार सौ साल से निभाई जा रही है। इस परम्परा को शुरू करने के पीछे क्या कारण रहे होंगे यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता पर ऐसा माना जाता है कि एक समय था जब पुष्करणा ब्राह्मण अपने राजाओं के साथ युद्ध पर जाया करते थे, (बीकानेर की बगीचीयों म लगे पुष्करणा ब्राह्मणों के पूर्वजों के चित्रों से यह स्पष्ट है कि पुष्करणा ब्राह्मण राजाओं की युद्ध में पूरी सहायाता किया करते थे), वह ऐसा समय था जब युद्ध वर्तमान समय की तरह नहीं बल्कि हाथों मे हथियार पकड कर लडे जाते थे और ऐसे युद्धों में समय भी बहुत लगता था। यह वह दौर था जब मनुष्य की साम्राज्यवादी अभिलाषा जोरों पर थी और राजा महाराजा अपने जीवन का एक बडा भाग इन युद्धों में लगा देते थे और इनके साथ आम सैनिक इनके सरदार और सब तरह के लोग भी युद्धों में अपना जीवन होम करते थे। माना जाता है कि ऐसे ही एक समय में बीकानेर के इन पुष्करणा ब्राह्मणों को लम्बा समय हो गया और इनके घरों में शादी विवाह जैसे संस्कार ही नहीं हो पाए। इन ब्राह्मणों ने राजा के सामने फरियाद करी और राजा ने उपाय सुझाया कि क्यों न ऐसा हो कि एक दिन निश्चित कर दिया जाए और उस दिन ब्राह्मणों के घर में शादी हो जाए और ऐसा करने के राजा के काम भी प्रभावित नहीं होंगें और शादी जैसा पवित्र संस्कार भी सम्पन्न हो जाएगा और माना जाता है कि ऐसे करके पुष्करणा ब्राह्मणों ने सावे ही शुरूआत की।
शुरूआत में यह सावा सात साल में एक बार मनाया जाता था फिर समय के साथ इसमें परिवर्तन हुआ और यह सावा चार साल में एक बार मनाया जाने लगा। वर्तमान में बढती आबादी के कारण समय में फिर परिवर्तन हुआ और यह सावा अब दो साल में एक बार मनाया जाता है। इस सावे की तिथियाँ सावे वाले साल में दिपावली से पहले तय की जाती है। यह तिथियाँ पण्डितों के शास्त्रार्थ द्वारा तय की जाती है जिसमें पुष्करणा ब्राह्मण समाज के किराडू, ओझा, छंगाणी, जोशी सहित कईं जातियों के लोग हिस्सा लेते हैं। सामाजिक व्यवस्था क अनुसार यह इन पण्डितों को सावे की तिथियाँ तय करने के लिए पुष्करणा समाज के लालाणी व किकाणी व्यास समाज लोग वाकायदा आमंत्रित करते हैं और जब यह तिथियाँ तय हो जाती है तो धनतेरस के दिन पूरे समाज के सामने समारोहपूर्वक यह तिथियाँ घोषित की जाती है। इन तिथियों में हाथकाम, गणेश परिक्रमा, पाणिग्रहण संस्कार सहित बरी की तिथियाँ व ब्राह्मण बालकों के यज्ञोपवित धारण करने की तिथियाँ घोषित की जाती है। इसी के साथ पूरी दुनिया में रहने वाले पुष्करणा ब्राह्मणों में एक उत्साह दौड जाता है कि सावे के दिन बीकानेर जाना है।
वास्तव में सामूहिक शादियों का यह उत्सव सावा प्रतीक है ब्राह्मण समाज की प्रगतिशील सोच का और समाजवादी दृष्टिकोण का। जिस समाजवाद की कल्पना कार्ल माक्र्स, गाँधी ने की थी, जिस समाजवाद को स्थापित करने का संकल्प भारतीय संविधान में लिया गया है उस समाजवादी सोच के अनुसार शादियाँ करने की यह परम्परा बीकानेर के पुष्करणा समाज में सदियों पुरानी रही है। एक ही दिन सैकडों शादियाँ होने से धन का अपव्यय नहीं होता और कम खर्च में सारा काम हो जाता है। महंगाई के इस दौर में सदियों पुरानी यह परम्परा उन परिवारों के लिए जीवनदान है जिनकी आय कम है और जो शादी के लाखों रूपय खर्च करने में अपने आप को असमर्थ समझता है और उन धनाढ्य वर्ग के लिए भी वरदान है जो अपनी विशिष्ट पहचान बनाना चाहता है। एक दिन सैकडो शादी मतलब लगभग हर घर में शादी इसलिए न तो रूठना न मनाना न ज्यादा खर्च न ज्यादा दिखावा और न ही किसी प्रकार का आडम्बर। सभी एक ही जैसे चाहे अमीर हो या गरीब चाहे छोटा हो या बडा। साहब सावा है सो सावे की शादी परम्पराओं के अनुसार शादी।
सावे की जो सबसे बडा फायदा होता है वह यह है कि सावे में शादी करने वाला दहेज का लेन देन बिल्कुल नहीं करता वैसे यहाँ यह बात मैं आपको बताना चाहँगा कि पुष्करणा ब्राह्मण समाज में दहेज के लेन देन की प्रथा नहीं के बराबर रही है। आज भी इस समाज में दहेज हत्या या दहेज के कारण तलाक के मामले लाखों में कोई ही नजर आता है। सावे के कारण दहेज नहीं होना इस सामूहिक विवाह की सबसे बडी उपलब्धि कहा जा सकता है।

सावे का प्रभाव सिर्फ पुष्करणा समाज के लोगों पर ही नहीं रहता है वरन् बीकानेर का रहने वाला हर व्यक्ति विवाह की इन खुशियों में शामिल होता है। विवाह के कारण हर वर्ग का व्यक्ति चाहे वह कपडे का व्यापारी हो या खाने पीने की वस्तुओं का व्यापारी, दूध दही बेचने वाला हो या सब्जी वाला सब कोई इस सावे में अपने आप को खुश व उत्साह से भरा हुआ महसूस करता है। घरों में रंग रोगन से लेकर सफाई कर्मचारी तक की व्यवस्था शादी ब्याह में करनी होती है सो सावे के कारण यह सारा वर्ग अपने आप को व्यस्त करता है और दिल से इस सावे का स्वागत करता है। दूकानदार अपनी दुकानों को रंग बिरंगी रोशनी सहित कईं तरह से सजाते हैं। इस सावे के कारण शहर की अर्थव्यवस्था को गति मिलती है और संस्कृति जीवित हो उठती है। शुभ मुहुर्त होने के कारण अन्य जातियों के लोग भी इस दिन शादियाँ करते हैं।
सामूहिक शादी का यह उत्सव सावा बीकानेर के पुष्करणा ब्राह्मण समाज में ही होता है जबकि बीकानेर के अलावा पुष्करणा समाज के लोग जैसलमेर, जोधपुर, फलौदी, पोकरण सहित कई स्थानों पर रहते हैं परन्तु परम्परा का यह अनूठा आयोजन सिर्फ बीकानेर में ही मनाया जाता है। आज विभिन्न समाजों के लोग सामूहिक शादियाँ करते हैं शायद उनकी प्रेरणा का स्रोत यह उत्सव ही रहा है।
एक बात और जहाँ आम दिनों में शादियों में बारातों में सैकडों और हजारों लोग होते हैं वहीं इस दिन बारात में आपको दस से बीस लोग ही नजर आएंगे कारण साफ है कि सैकडों शादियाँ है हर घर में शादी है सो कौन किसके जाए सब अपने अपने घर में हो रही शादी में शरीक होते हैं। इसी तरह पण्डितों को भी समय नहीं मिलता क्योंकि आज पण्डित जी को एक ही रात में कईं जोडों का मिलन करवाना है सो पण्डित जी भी काफी व्यस्त रहते हैं और यही हाल बण्ड वालों का टैण्ट वालों का होता है। मतलब जिधर देखो शादी शादी और बस शादी। ऐसा होता है माहौल बीकानेर का सावे वाले दिन।
इस बार यह सावा चौबीस फरवरी को हो रहा है अतः अगर आपकों इस माहौल में शामिल होना है तो आईए बीकानेर और साक्षी बनिए एक ऐसे आयोजन के जिसे देखकर आप यह जरूर कहेंगे वाह क्या बात है! और एक बात सावे में निमन्त्रण की आवश्यकता भी नहीं होती बीकानेर में सो जहाँ अच्छा लगे वहाँ खाना भी खा सकते हैं आप और खिलाने वाले भी बडे प्यार से खिलाएंगे। पर मुस्कान रहे और उसकी नजरों की आशाओं के दीप झिलमिलाते रहे।
श्याम नारायण रंगा ’अभिमन्यु‘
पुष्करणा स्टेडियम के पास, नत्थूसर गेट के बाहर, बीकानेर
पुष्करणा स्टेडियम के पास, नत्थूसर गेट के बाहर, बीकानेर