
मैं अपनी बात शुरू करने से पहले एक महत्वपूर्ण बात पर आप सब का ध्यान दिलाना चाहगा कि अफजल गुरू व कसाब में एक महत्वपूर्ण फर्क है कि कसाब पाकिस्तानी नागरिक था और अफजल गुरू भारत का ही एक नौजवान था। कसाब को जन्मजात ही इस देश व इस देश की व्यवस्था की नफरत ने पाला था लेकिन अफजल गुरू ने इस देश की व्यवस्था, यहां के लोकतंत्र व यहां के स्वतंत्रता दिवस को स्वीकार किया था, तो फिर ऐसा क्या था जिसने अफजल गुरू को कसाब की श्रेणी में ला खडा किया।
जैसा कि मैंने इंटरनेट पर पढा कि अफजल गुरू अपनी स्कूल में स्वतंत्रता दिवस की परेड का नेतृत्व करता था लेकिन एक दिन उसने देखा कि सीमा पर तैनात जवान राष्ट्र की सुरक्षा के नाम पर उसके गांव में किसी तरह का अत्याचार कर रहे हैं और वहां से अफजल गुरू की मानसिकता मे बदलाव आया। दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक और एम बी बी एस का विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र का एक नौजवान धीरे धीरे इस देश की व्यवस्था से नाराज होता गया और उसका यह सफर संसद पर हमले पर जाकर सामने आया और अंततः उसके दिल में उपजी इस नकारात्मक भावना ने उसे फाँसी पर लटकने को मजबूर कर दिया।

आज हमारी इस व्यवस्था से और इस तंत्र से पूरा देश नाराज है, पूरे देश में इस व्यवस्था व तंत्र को लेकर आवाज उठ रही है। ऐसे में किसी युवा का भटक जाना कोई बडी बात नहीं है। अफजल गुरू के साथ गलत ये हुआ कि उसकी इस सोच का पडौसी देश ने फायदा उठाया, चूंकि वह सीमांत प्रांत का रहने वाला था तो इसके दिल में अवयवस्था से उपजे बीज को पडौसी देश ने पानी दिया और धार्मिक कट्टरता की खाद से पल्लिवत व पुष्पित किया। और दोस्तों धर्म मनुष्य के रग रग में व्याप्त है तो ऐसे में किसी युवा को यह बताना कि तुम्हारी सारी नाराजगी धर्म के रास्ते दूर हो जाएगी जरूर उस युवा को एक दिशा प्रदान करती है। अब यह दिशा सही है या गलत ऐसी सोचने की शक्ति युवा मन की नहीं हो सकती। अफजल ने जो किया निश्चित तौर पर वो गलत था और राष्ट्र विरोधी था।
तो क्या राज्य की सरकार की यह जिम्मेदारी नहीं है कि वो ऐसी व्यवस्था कायम करे कि कोई अफजल पैदा ही न हो, सिर्फ किसी को फांसी पर लटका देने से युवाओं का आक्रोश या व्यवस्था दुरूस्त नहीं हो जाएगी। राज्य की यह जिम्मेदारी है वो ऐसा माहौल पैदा करें कि युवाओं में असंतोष हो ही नहीं और ऐसा क्यों होता है कि हमारा पडौसी राष्ट्र हमारे युवाओं को बर्गलाने में सफल हो जाता है, क्यों कोई युवा किसी के बहकावे में आ जाता है क्या इस मूल प्रश्न पर सोचना राज्य की जिम्मेदारी नहीं है।हमारे संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में राज्य को भी जिम्मेदार ठहराया गया है।
मेरा इस आलेख के माध्यम से यह कहने का मतलब है कि राज्य में ऐसी व्यवस्था हो जो कि हमारी इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोक का तंत्र है, यह अहसास दिलाए। जनता को लगे कि जनता का जनता के लिए और जनता के द्वारा राज हो रहा है। व्यवस्था अपनी लगे, खुद की बनाई लगे। सिर्फ दण्ड देना ही अपराध समाप्त करने की निशानी नहीं है, इससे तो अपराधी समाप्त होता है। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। तो अपराधी को सजा मिले इससे ज्यादा जरूरी यह है कि अपराध मूल से नष्ट हो ऐसी व्यवस्था कायम हो।
श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’
पुष्करणा स्टेडियम के पास
नत्थूसर गेट के बाहर
बीकानेर {राजस्थान}
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