हर इंसान को भगवान कुछ ना कुछ कला देता है पर उसको पहचानने वाला कोई एक होता है और सब कलाओा में नृत्य कला को श्रेष्ठतम माना जाता है और नृत्य भी कई शैलियो में किया जाता है। राजस्थान का पारमपारिक नृत्य की दुनिया में अलग पहचान है उसी नृत्य कला के माध्यम से कदमो को सुर-ताल के सयांेजित करते हुए मानसी सिंह ने अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया है। मानसी की उम्र भले ही कम हो लेकिन उसके हौसलों की उडान आसमान से भी ऊपर है मानसी ने अपनी कला का लौहा देश में ही नही बल्ेिक विदेशो में मनवाया अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित कर बीकानेर का ही नही पूरे राजस्थान की लोककला का लौहा मनवाया है। नृत्यागनां मानसी पंवार से हमारे संवादाता देव नारायण छंगाणी ने बातचीत की
नृत्य के प्रति आपका रूझान कैसे उत्पन्न हुआ ?
मेरी मम्मी को नृत्य करने का शौक था परन्तु किन्ही कारणवश वो अपना यह शौक पूरा नही कर पाई लेकिन जब मैं 4 साल की की थी तो मैंने एक लोक गीत पर नृत्य प्रस्तुत किया उस नृत्य को मेंरं परिजनो व अन्य लोगो ने खूब सराहा। उस प्रस्तुति के बाद मेरी मम्मी की ऑखो में एक अलग खुशी दिखाई दी फिर मेैने यह सोच लिया कि अपनी मम्मी का सपना जरूर पूरा करूॅंगी। उसके बाद पर्यटन विभाग ने मुझे ऊँट उत्सव में आमत्रित किया और वहॉं पर मेरा नृत्य देखने के बाद कई विदेशी संस्थानो द्वारा मुझे नेपाल, भूटान, चाईना, फ्रांस, उतरकोरिया, लंदन, साऊथ अफ्रीका सहित अन्य देशो में राजस्थानी नृत्य के प्रस्तुति के लिये बुलाया गया।

गुलाबो प्रदेश की सम्मानीय कलाकार है। शोषण के खिलाफ वे अच्छा कदम उठा रही है। बीकानेर में अब तक कोई ऐसा वाकया नही हुआ है जिसमें कलाकारो को उपेक्षा मिली हो यहॉ कला के कद्रदान है। यहॉु अन्य शहरो के मुकाबले बीकानेर में कलाकारो को अच्छा मानदेय नही मिलता पर कला के मुरिदो के तारीफ से यह कमी नही खटकती एक कलाकार को और क्या चाहिये। दर्शको का प्यार वह अगर मिल जाता है तो वह सब कुछ दे देता है।
कुछ समय पहले एक कार्यक्रम था मुझे स्टेज पर जाने से पहले पापा ने कहॉ था कि चेहरे पर मुस्कुराहट व ताजगी रखना लेकिन प्रस्तुति देते समय मैं कुछ और सोच रही थी और मुस्कुरा नही रही थी लेकिन जैसे ही प्रोग्राम खत्म हुआ पापा स्टेज पर आये और पूरी ओडियंस के सामने मुझे दो थप्पड लगाये उन्होने कहॉ इतने लोग अपना बेशकीमती समय निकालकर तुम्हारी परफारमेंस देखने आये है और तुम रोनी सूरत से उदास करोगी यह वाक्या मुझे हमेशा याद रहेगा यह मेरी जिदंगी की सबसे बडी सीख है।
अभी मैं कत्थक में विशारत कर रही हू और साथ ही भवई, बृज के चरकुला तथा खरताल में महारथ ले चुकी हू और तराजू वेस्टर्न सीख रही हू। अगर भगवान ने चाहा तो आगे बीकानेर में नृत्य प्रशिक्षण के लिये इंस्टीट्यूट खोलूंगी इसी राह पर आगे बढ रही हू नृत्य कला को कैरियर के रूप में अपनाने का ही इरादा है।