राजनीतिज्ञों के प्रति एक विश्वव्यापी धारणा यह बनती जा रही है या यूं कहें कि यह धारणा अब आम लोगों के मस्तिष्क अच्छी तरह से बैठ चुकी है कि राजनीतिज्ञों कि कथनी और करनी में जमीन आसमान का अन्तर होता है। अथवा नेता कहते कुछ हैं और करते कुछ और। सम्भवतः शायर ने नेताओं के इसी रवैये को मद्देनजर रखते हुए कहा था किः-
किताबें, रिसाले न अखबार पढना।
मगर दिल की हर बात, इक बार पढना।।
सियासत की अपनी अलग इक जुबाँ है।
जो लिखा हो इकरार, इन्कार पढना।।
जाहिर है जब आम नेताओं का सोचने, बात करने तथा उनके कार्यकलापों का कोई विश्वास ही न हो तो आखिर बहुजन समाज पार्टी की नेता कुमारी मायावती स्वयं को इस राजनैतिक प्रणाली से क्योंकर अलग रख सकती हैं।
पूरा देश बहुजन समाज पार्टी के अस्तित्व में आने से लेकर अब तक की उसकी कार्यकलपों तथा राजनैतिक पैंतरेबाजी को बडे गौर से देखता आ रहा है। कथित उच्च व स्वर्ण जाति विशेषकर ठाकुर, पंडित और वैश्य समाज के विरोध को अपना आधार बनाकर गठित की गई बहुजन समाज पार्टी ने भारत के शेष समाज को संगठित करने का आह्वान किया था। भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का लाभ उठाते हुए मायावती व उनकी पार्टी ने देश के स्वर्णों के विरुद्घ खूब जमकर अपशब्द उगले। अभद्र व असंसदीय नारों का जमकर प्रयोग किया गया। यहां तक कि वे उत्तर प्रदेश के दलित समाज को यह विश्वास दिला पाने में सफल रहीं कि वर्तमान समय में वही देश की एकमात्र ऐसी नेता हैं जोकि दलितों को मान-सम्मान तथा रोजगार आदि दिला सकती हैं। स्वर्गीय कांशीराम तथा मायावती ने स्वर्ण जाति के लोगों को मनुवादी कह-कहकर दलित समाज के लोगों के दिलों में स्वर्ण जाति के प्रति इतनी नफरत पैदा कर दी कि वे अन्य राजनैतिक दलों को छोडकर बहुजन समाज पार्टी की ओर आकर्षित होने लगे। परन्तु जब मायावती को तीन बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने पर यह तजुर्बा हो गया कि मात्र कथित बहुजन समाज के मतों के बलबूते पर ही वे उत्तर प्रदेश की पूर्ण बहुमत वाली सरकार की मुखिया नहीं बन सकतीं तब मायावती ने उन्हीं मनुवादियों से वोट की भीख मांगनी शुरु कर दी। और अब नया नारा बहुजन समाज का नहीं बल्कि सर्वजन समाज का लगने लगा।
यह तो थी उत्तर प्रदेश की राजनैतिक पैंतरेबाजी जिसे भारतीय मीडिया ने सोशल इंजीनियरिंग का नाम दे डाला। अब बहन जी इन्हीं मनुवादियों के रहमोकर्म व समर्थन से उत्तर प्रदेश की पूर्ण बहुमत वाली सरकार की मुखिया बन चुकी हैं। अब बहन जी को मनुवादियों को कोसते व गालियां देते भी नहीं देखा जा रहा है। बहुजन समाज के नारे को अपने हित में पूर्ण रूप से प्रभावी न पाने वाली बहन जी ने अब सर्वजन समाज के हितों की बात करनी शुरु कर दी है। ‘मनुवादियों’ के हितों की भी। आश्चर्य की बात है कि मायावती को राजनीति में लाने वाले कांशीराम जी ने ही उन्हें कथित मनुवादियों का मुखरित होकर विरोध करने का गुण सिखाया था। कांशीराम ने ही जाति आधारित वे समीकरण मायावती को समझाए थे जो यह प्रमाणित करते थे कि बहुसंख्यक समाज के मतों के बल पर अल्प समाज के लोग किस प्रकार शासक बन बैठते हैं। परन्तु कांशीराम के स्वर्गवास के तत्काल बाद ही मायावती की राजनैतिक कार्यप्रणाली ने ऐसी करवट बदली जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। मायावती के राजनैतिक जीवन में सतीश मिश्रा जोकि स्वयं कथित रूप से ‘मनुवादी’ समाज से हैं, ने प्रवेश किया। और इन्हीं मिश्रा जी ने मायावती को बहुमत की सरकार के साथ राज करने का गुण सिखाया। यहीं से मायावती में एक जबरदस्त परिवर्तन आया तथा अवसर के अनुरूप उनके नारे, कथित मनुवादियों के प्रति उनके विचार, सब कुछ बदलने लगे। यहां तक कि बहन जी ने उस बहुजन समाज का गुणगान करना भी कम कर दिया जिसने कि मायावती को एक सशक्त नेता के रूप में तथा उनकी बहुजन समाज पार्टी को एक मान्यता प्राप्त राजनैतिक दल के रूप में स्थापित किया था।सवाल यह है कि क्या अब मायावती जिस सर्वजन समाज के हितों की बात कर रही हैं, यह बहुजन समाज पार्टी का स्थायी राजनैतिक पैंतरा है या फिर यह भी परिवर्तनशील है। या फिर केवल उत्तर प्रदेश में बहुमत में आने के लिए यह नारा दिया गया था। गत् दिनों हरियाणा में एक जनसभा के दौरान मायावती ने एक ही मंच व एक ही समय पर दो तरह की बातें की। एक ओर तो उन्होंने सर्वजन हिताय की बात कहकर समाज के सभी वर्गों को अपने साथ जोडने का प्रयास किया। परन्तु साथ ही साथ उन्होंने यह भी कह डाला कि यदि बहुजन समाज पार्टी हरियाणा में सत्ता में आती है तो यहां का मुख्यमंत्री गैर जाट होगा। आखिर सर्वजन समाज का यह कैसा नारा है। क्या जाट समुदाय सर्वजन समाज का अंग नहीं है? क्या मायावती की इस संकुचित घोषणा से यह बात साफ नजर नहीं आती कि सर्वजन समाज की बात करने के बावजूद भी उनका जाति आधारित भेदभाव किया जाना अभी जारी है। उनकी हरियाणा में गैर जाट मुख्यमंत्री बनाए जाने की घोषणा से यह भी जाहिर होता है कि वे उत्तर प्रदेश में कुछ और विचार रखती हैं तो हरियाणा में कुछ और। उनकी इस घोषणा से ऐसा प्रतीत होता है कि उनकी पार्टी की तथा स्वयं उनकी समाज आधारित राष्ट्रीय सोच पूरी तरह से संदेहपूर्ण है।
हरियाणा एक जाट बाहुल्य राज्य है। इस राज्य के 1966 में अस्तित्व में आने के बाद से लेकर अब तक यहां नौ व्यक्ति मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ चुके हैं जिनमें 6 व्यक्ति जाट समुदाय के थे तो तीन नेता गैर जाट समुदाय के। जाट समुदाय के मुख्यमंत्रियों में राव वीरेंद्र सिंह, बंसीलाल, चौधरी देवीलाल, ओमप्रकाश चौटाला, हुकुम सिंह तथा वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के नाम उल्लेखनीय हैं। जबकि गैर जाट मुख्यमंत्रियों में पंडित भगवत दयाल शर्मा, बनारसी दास गुप्ता व चौधरी भजनलाल शामिल हैं। अर्थात् यह नहीं कहा जा सकता कि जाट बाहुल्य हरियाणा राज्य में गैर जाट समुदाय का व्यक्ति मुख्यमंत्री नहीं बन सकता अथवा बना नहीं। परन्तु चुनाव पूर्व इस प्रकार की घोषणा करना कि हमारा मुख्यमंत्री गैर जाट होगा, इस घोषणा को तो कम से कम उचित कतई नहीं कहा जा सकता। एक ओर तो सर्वजन समाज की बात करना तो दूसरी ओर जाट बाहुल्य हरियाणा राज्य में गैर जाट समुदाय के व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा करना स्वयं आपस में विरोधाभास पैदा करने वाले बयान प्रतीत होते हैं।
दरअसल अब मायावती की निगाहें दिल्ली के सिंहासन पर जा टिकी हैं। वे भी अन्य कई कतारबद्घ नेताओं की तरह प्रधानमंत्री पद की दावेदार हैं। जहां तक बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय स्तर पर जमीनी हकीकत का फिलहाल प्रश्ा* है तो उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, गुजरात आदि राज्यों में हुए पिछले चुनावों में बहुजन समाज पार्टी को बुरी तरह से मुंह की खानी पडी थी। प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी करने वाली मायावती की पार्टी का दक्षिण भारतीय राज्यों तथा पूर्वोत्तर के राज्यों में तो कोई नाम लेने वाला ही नहीं है। ऐसे में भले ही वे चन्द्रशेखर अथवा एच डी देवेगौडा अथवा चौधरी चरण सिंह की तरह जोडगांठ कर अथवा कांग्रेस या भारतीय जनता पार्टी जैसे किसी बडे राजनैतिक दल के भीतरी अथवा बाहरी समर्थन से देश के प्रधानमंत्री पद तक भले ही क्यों न पहुंच जाएं। परन्तु गत् दो दशकों में मायावती पहले बहुजन समाज तथा अब सर्वजन समाज तथा साथ ही साथ हरियाणा में गैर जाट व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाए जाने की घोषणा जैसी खिचडीनुमा बातें करने लगी हैं। इस प्रकार के विरोधाभास पैदा करने वाले बयानों से मायावती राष्ट्रीय स्तर पर अपनी कोई सही दिशा या पहचान बना सकेंगी, यह संदेहपूर्ण है।
अतः मायावती को कम से कम अब जबकि वे सर्वजन हिताय व सर्वजन सुखाय की बातें करनी लगी हैं ऐसे में उन्हें गैर जाट मुख्यमंत्री बनाए जाने जैसी घोषणा कम से कम हरियाणा राज्य में तो बिल्कुल नहीं करनी चाहिए थी। हरियाणा ही क्या बल्कि पूरे देश में कहीं भी मायावती को जाति आधारित कोई मापदंड स्थापित नहीं करना चाहिए अन्यथा उनके सर्वजन समाज के नए लोकलुभावने नारे को भी बहुजन समाज के नारे की ही तरह थोथा व अवसरवादी समझा जाने लगेगा।
Nirmal Rani [email protected]