भारत के राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालने के अवसर पर संसद के केन्द्रीय कक्ष में श्रीमती प्रतिभा देवीसिह पाटिल का सम्बोधन
‘मैं आप सभी का अभिवादन करती हूं । मैं संसद तथा राज्य विधानसभाओं के सदस्यों को धन्यवाद देती हूं कि आपने मुझे चुना है । पिछले कुद हफ्तों के दौरान देश के कोने-कोने से इतने सारे लोगों का मुझे जो प्यार और सम्मान मिला है, उससे मैं अभिभूत हूं । मैं इस सुखद अनुभव के साथ आज यहां गणतंत्र के प्रथम सेवक के रूप में आफ सामने उपस्थित हूं ।
मेरा पूरा प्रयास रहेगा कि मैं उन सभी लोगों की अपेक्षाओं पर खरी उतरूं जिन्होंने भारत के लोगों के बेहतर हितों के लिए काम करने हेतु मेरा चयन किया है । मेर विनश कंधों पर जो बडी जिम्मेदारी डाली गयी है उससे मैं पूरी तरह वाकिफ हूं ।
इस साल हम भारत की आजादी की प्रथम लडाई की १५०वीं वर्षगांठ मना रहे हैं । आज जबकि मैं आफ सम्मुख खडी हूं, मुझे उन लोगों के साहस और बलिदान से प्रेरणा मिल रही है जिन्होंने आजादी दिलाने के लिए देश का नेतृत्व किया । हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन और हमारे स्वतंत्रता संघर्ष की अनूठी विशेषताओं में से एक विशेषता यह थी कि इनमें पुरुषों और महिलाओं दोनों ने बढ-चढकर हिस्सा लिया । विदेशी शासन के खिलाफ इस लडाई का नेतृत्व करने वालों में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल और कित्तुरू रानी चेन्नम्मा जैसी बहादुर महिलाएं भी थीं ।
कुछ ही दिनों में हम अपनी आजादी की ६०वीं वर्षगांठ मनाएंगें । मैं पण्डित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद और सरोजिनी नायडू जैसे नेताओं द्वारा देश के स्वतंत्रता-संघर्ष में दिए गए महान योगदान का कृतज्ञता के साथ स्मरण करती हूं जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अनूठे और अग्रणी नेतृत्व में इस संघर्ष में कूदे । इसलिए, हरेक भारतीय की तरह मुझे भी इस बात पर गर्व है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने गांधी जयंती, २ अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिसा दिवस के रूप में घोषित किया है । अपनी आजादी के ६०वें वर्ष में मिले इस अनूठे सम्मान के लिए हम विवि के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं ।
हमारी प्राचीन सभ्यता है, लेकिन हमारा देश अभी एक युवा राष्ट्र है । जब हम पीछे मुडकर देखते हैं तो हमें गर्व होता है कि हमने अपनी आजादी के ६० सालों के दौरान जीवन के सभी क्षेत्रों में जबरदस्त कामयाबियाँ हासिल की हैं । हमने दुनिया को दिखा दिया है कि किस प्रकार एक विकासशील देश के एक अरब लोग अपने बेहतर जीवन स्तर के लिए संघर्ष कर रहे हैं और किस प्रकार वे अमन-चैन और भाईचारे के साथ रह सकते हैं तथा एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के ढांचे के भीतर तरक्की के रास्ते पर आगे बढ सकते हैं ।
राष्ट्रपति के रूप में, मैं भारत के लोगों को भरोसा दिलाती हूं कि संविधान की गरिमा को बनाए रखने में मुझे हमेशा ही बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के उस संदेश से प्रेरणा मिलती रहेगी जो उन्होंने संविधान सभा के अपने समापन भाषण में दिया था और जिसमें उन्होंने सामाजिक और आर्थिक उद्देश्यों को हासिल करने के लिए संवैधानिक तरीकों का दृढता से पालन करने की जरूरत पर जोर दिया था । साठ साल पहले इस परिसर में अपने सम्बोधन में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि ‘आजादी और सत्ता मिलने से जिम्मेदारियाँ भी मिलती हैं‘। उन्होंने हमें याद दिलाया था कि इन जिम्मेदारियों को निभाने का दायित्व इस सभा के ऊपर है जो भारत के प्रभुत्ता सम्पन्न लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाली एक प्रभुता सम्पन्न संस्था है । भारत की प्रथम और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने हमें यह दिखाया है कि उपेक्षित और वंचित लोगों का उत्थान तथा गरीबी उन्मूलन सरकारी पदों पर बैठे लोगों का सर्वोपरि और पवित्र दायित्व है ।
आज भारत ने तरक्की के एक नए युग की दहलीज पर कदम रखा है । हमारा देश प्रगति की राह पर इतनी तेजी से विकास कर रहा है कि इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ । इसे देखते हुए, हमारा यह सम्मिलित प्रयास होना चाहिए कि इस विकास को बनाए रखा जाए और यह सुनिशिचत किया जाए कि इस प्रक्रिया से सम्पूर्ण समाज लाभान्वित हो । इसीलिए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि विकास की प्रक्रिया में हमारे समाज के हर वर्ग विशेषकर कमजोर और उपेक्षित वर्ग को बराबर की भागीदारी मिले तथा उन्हें इसके बराबरी के लाभ हासिल हों। हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि आर्थिक विकास की प्रक्रिया में देश के हर क्षेत्र की भागीदारी हो और हर क्षेत्र को इसके लाभ मिल सकें ।
मुझे सत्रहवीं सदी के महान मराठी कवि संत तुकाराम के ये शब्द याद आ रहे हैं -
गरीबों और शोषितों का, जो है सच्चा मित्र
ईश्वर उसके साथ है, उसे जानियो संत ।
(जो गरीबों और शोषितों को अपना मित्र बनाता है, वही साधु कहलाता है, क्योंकि ईश्वर सबके साथ होता है ।)
मैं आज देश के सभी नागरिकों के कल्याण के लिए काम करने की अपनी प्रतिबद्धता प्रकट करती हूं ।
हमें देशवासियों की पूरी क्षमता को इस्तेमाल में लाने के लिए उनकी क्षमताओं में निवेश करना होगा और उन्हें आधुनिक शिक्षा और व्यापक स्वास्थ्य सेवा प्रदान कर सशक्त बनाना होगा । हमें कुपोषण, सामाजिक कुरीतियाँ, बाल-मृत्यु तथा कन्या भ्रूणहत्या के अपराध को जड से मिटाना होगा । मैं बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपनी पूरी प्रतिबद्धता प्रकट करती हूं । हमें अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के वास्ते गरीबी, अज्ञानता और बीमारियों को दूर करने के लिए अनवरत अभियान चलाना होगा । हमें अपनी धरती और अपने पर्यावरण को बचाने के लिए अपनी बुद्धिमत्ता और दूरदृष्टि का परिचय देना होगा ताकि सभी सजीव प्रजातियों और भावी पीढियों का कल्याण हो सके ।
मैं शिक्षा के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध हूं और चाहती हूं कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह पुरुष हो या स्त्री, लडका हो या लडकी, आधुनिक शिक्षा से वंचित न हो । मेरे लिए महिलाओं का सशक्तिकरण विशेष महत्वपूर्ण है क्योंकि मैं समझती हूं कि इससे राष्ट्र को साक्त बनाने में मदद मिलेगी ।
हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी से जारी जरूरतें बेहतर ढंग से पूरी हों और इससे एक वैज्ञानिक सोच विकसित हो जिससे हमारे लोगों, हमारे किसानों, मजदूरों, पेशेवर लोगों और उद्यमियों की पूरी क्षमता को इस्तेमाल में लाने में मदद मिल सके ।
हमारे देश के लोग एक बेहतर शासन चाहते हैं, वे तेजी से विकास चाहते हैं और शांति और सुरक्षा के माहौल में जीना चाहते हैं । हम सभी को सम्प्रदायवाद, जातिवाद, उग्रवाद और आतंकवाद जैसी विघटनकारी और विध्वंसक ताकतों के खिलाफ लडने के लिए एकजुट होना होगा ।
आज भारत जिस तरह से अपने लोकतांत्रिक ढांचे में रह कर सामाजिक और आर्थिक तरक्की कर रहा है, उसे सारी दुनिया सम्पूर्ण मानवता की आशा के प्रतीक के रूप में देख रही है और उसका आदर कर रही है । जब मैं अपने महान देश के भविष्य के बार में सोचती हूं, इसे आगे ले जाने के लिए अपने कर्त्तव्यों और उत्तरदायित्वों के बारे में सोचती हूं तो मुझे गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के भारत के बारे में संजोए उन विचारों से प्रेरणा मिलती है जिसमें उन्होंने निर्भय होकर और सिर ऊँचा रखकर स्वच्छंद स्वर्ग की ओर आगे बढने का आह्वान किया था । आइए, हम सब एक बार फिर से अपने संवैधानिक आदर्शों के प्रति अपने आपको समर्पित करें तथा मिलकर ऐसे ही भारत के निर्माण के लिए कार्य करें ।
जय हिन्द ।‘