त्रेतायुग के दुष्ट रावण को भगवान राम द्वारा मार दिया गया, लेकिन आज कलयुग के इस आधुनिक समय मे जहां हजारों बुराईयां आप जैसे राम का मुंह ताक रही है कि आप इन्हे खत्म करने के लिए आगे आऐं, लेकिन दुःखद हम भगवान श्रीराम के अनुयायी केवल प्रतीकों को दोहराने मे लगे हुए है।
एक अनुमान के मुताबिक हर एक शहर मे कम से कम पांच से दस जगहों पर रावण, मेघनाद और कंुभकर्ण के पुतले और इस आयोजन के पेटे कम से पांच से दस लाख की अच्छी खासी रकम लगाई जाती है, यानि एक छोटे शहर मे भी 50 लाख रूपये प्रति वर्ष बारूदों मे उड़ जाते है, और उसका परिणाम स्वरूप हम सत्य की असत्य पर जीत होते देखते है, शुभकामनाऐं देते है, लेकिन क्या वास्तव मे सनातन धर्म की अनुकरणीय परम्परा का निर्वहन कर रहे है, व्यावसायिक करण की इस दौड़ मे हो सकता है कि कई लोगों के लिए यह रोजगार उत्पन्न करने जैसा है, सनातन धर्म की रक्षा करने जैसा है, लेकिन व्यवसाय तो दूसरे जरूरत वाले कार्यों को करके पूरा करके भी किया जा सकता है, इतनी राशि मे हर साल जिले की बड़ी सार्वजनिक अस्पतालों मे सुविधाओं का इजाफा करना शामिल हो सकता है, नई पीढ़ी के लिए उच्च शिक्षा की व्यवस्था करना हो सकता है, सनातम धर्म के अनुसार अत्याधुनिक उच्च कलाकृतियों वाले मन्दिर, धर्मशालाऐं और गरीब लोगों के लिए भण्डारे स्थापना करके भी किया जा सकता है, फिर लाखों करोड़ो का बारूद उड़ा देना! ये कहां तक आपके अन्तर्मन को इजाजत दे देता है।
एक तरफ मंहगाई की राजनीति होती रहती है और दूसरी तरफ ऐसे आयोजनों पर करोड़ो लुटा दिये जाते है। इन सब के लिए आप और हम जैसे ही आम आदमी का सहयोग कम नही होता है क्योंकि गली मौहल्ले स्तर के नेताओं को मांग के आगे ऐसे कार्यो मे दान, सहयोग, स्पाॅन्सरशिप राशि देते है, देखने जाते है, इन आयोजन मे शामिल होते है।

1980 के दशक तक के जन्मे हुए लोगों तक के लोगो का तो मै कह सकता हुं कि इन्होने भारत भर मे इस तरह का प्रदर्शन पहले नही देखा है, जहां 80 से 200 फीट का रावण तो जल रहा है, लेकिन अपने अन्दर दूसरों को धकेलकर आगे बढ़ने और स्वभुं होने की होड़ उससे भी ज्यादा तेजी से जल रही है।

अभी हाल मे सोशिल मीडिया मे वाइरल हुए भगवान गणेश के मूर्तियों का एक वीडियों वाइरल हुआ था जिसमे ठेका मजदूर द्वारा पुलिस सुरक्षा मे सैकड़ो मूतिर्यों को नदी मे बड़ी ही बेकद्री से फेंक रहे है, ये वें मूतिर्यंा थी जिसके सामने लाखों लोगों ने अपनी श्रद्धा प्रकट की थी, अपना शीश नवाया और यथा सम्भव रूपये और उपहार भी अर्पण किये। आयोजकों ने भक्तों द्वारा अर्पित वो रूपयंे, उपहार तो बहुत प्यार से संभाले है, लेकिन उस भगवान की मूर्ति को उन्होने ऐसे तिरस्कृत रूप मे नदी मे फैंकने के लिए छोड़ दिया, तो बताओ कहां धर्म की रक्षा हुई।

जोश, उमंग से लवरेज ऐसे कार्यक्रम आयोजकों के लिए मेरा ख्वाब कहता है कि रावण भी आजकल अत्याधुनिक तरीके से मारे जा सकते है, जैसे चाइना कि कम्प्युटर आधारित लेजर, लेड लाइटों की ऐसी तकनीक विकसित की है कि आप कोई भी तरीके की आतिशबाजी जो की किसी कैरेक्टर, संगीत और अन्य आधुनिक कलाकृतियां आप जलती दिखाई ।

कहानी, विचार, भाव हमेशा वो ही रहेंगें जो हमारे पूर्वज स्पष्ट करके जा चुके है, लेकिन हर अगली पीढ़ी उसको अलग ढंग से समझती है, जिति है, जैसे देवदास कथानक पर बनी तीन फिल्में: एक दिलीप कुमार अभिनीत, दूसरी शाहररूख अभिनीत और तीसरी अभय देओल की ‘देव डी’ । तीनों फिल्मों मे समय और पीढ़ी का सोचने और समझने का अन्तर स्पष्ट किया है, कहा जाता है कि समय हमेशा बदलाव मांगता है, हो सकता है ऐसे प्रदर्शन आज की पीढ़ी की मांग हो, चलों जमाने के साथ कदम कदम से मिलाने के लिए एक ओर ख्वाब जोड़ते है।
ख्वाब ये कि शहर की यही पांच दस आयोजक संस्थाऐं मिलकर एक विराट् आयोजन करे जिसमे बड़े से बड़ा रावण हो, जैसे बरारा शहर का रिकाॅर्ड तोड़ ऊंचाई वाला राणव, जो देशभर मे किर्तीमानी ऊंचाई के लिए प्रसिद्ध होता जा रहा है, अब शहर से बाहर के लोग भी इसकी विराट्ता देखने आते है। इसी तरह कोलकाता के मां दुर्गा के अत्याध्ुानिक सुसज्जित पाण्डाल, जिसने देश के धार्मिक पर्यटन का बड़े स्तर पर ध्यानार्कषण किया है।
तो क्या कहिऐगा जनाब ऐसे ख्वाबों के बारे मे - आपको भी तो आते हे ऐसे ख्वाब ---
आनन्द आचार्य (खबरएक्सप्रेस.काॅम)