जब आईना दिखाया तो चेहरे उतर गये
‘साख अर सीख’’ की अठारहवीं कड़ी के अवसर पर कार्यक्रम

बीकानेर। नगर का काव्य रचना संसार चाहे वह हिन्दी, उर्दू और राजस्थानी का हो, आज के समकालीन दौर में अपनी एक अलग पहचान भारतीय भाषाओं की काव्य सृजन यात्रा में रखता है। आज काव्यमय हुवे वातावरण में कविताओं के माध्यम से जहां भाषा की रंगत और उसकी मिठास से श्रोता आनंदित हुए वहीं आज प्रस्तुत कविताओं की गूंज हमारे अंदर तक अनगूंज पैदा करती है ‘‘साख अर सीख’’ जैसे आयोजनों के माध्यम से साहित्यिक परिवेश एवं सृजन के नवाचार को आगे ले जाने में सार्थक प्रयास है।
यह उद्गार आज सायं नागरी भंडार सुदर्शना कला दीर्घा में प्रज्ञालय संस्थान द्वारा आयोजित ‘‘साख अर सीख’’ की अठारहवीं कड़ी के अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि एवं आलोचक भवानी शंकर व्यास ‘विनोद’ ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा की डॉ. सुलक्षणा दत्ता की कविताओं का अपना अलग मुहावरा है। डॉ. दत्ता ने ‘हवा’ शृंखला की कविताओं के माध्यम से समय बोध और सौन्दर्य बोध एवं अनुभव के भव के साथ-साथ आत्मसाक्षात्कार करवाती कविताएं एक अलग पहचान रखती है।
इसी क्रम में शमीम बीकानेरी की कविता पर बोलते हुए भवानी शंकर व्यास ने कहा की शमीम उर्दू के राष्ट्रीय स्तर के शायर है और आपकी शायरी के जुदा-जुदा रंग नवबोध, नव अर्थवता की गहराई के साथ श्रोताओं को रोमंचित करते है। आपकी शायरी में नव प्रयोग और संप्रेषणता की सहजता महत्वपूर्ण है। राजस्थानी के वरिष्ठ कवि श्याम महर्षि जो आज के अतिथि कवि थे, की कविताओं के बारे में आपने कहा की उनके द्वारा आज पढ़ी कविताएं जीवन यथार्थ और मानवीय संघर्ष की प्रगतिशील स्वर की प्रतिनिधि कविताएं हैं और ग्रामीण परिवेश और हमारी सामाजिक समरसता को रेखांकित करने वाली आपकी कविताएं श्रोताओं को गहरे तक आंदोलित करती है।
कार्यक्रम संयोजक कवि कथाकार एवं राजस्थानी मान्यता आंदोलन प्रवर्तक कमल रंगा नें कहा कि भाषायी अपनत्व एवं सृजन को समर्पित ‘साख अर सीख’ की इस अठारहवीं कड़ी में डॉ. सुलक्षणा दत्ता, शमीम बीकानेरी एवं अतिथि कवि श्याम महर्षि की काव्य प्रस्तुतियां कविता की अनेक छवियों के साथ-साथ शिल्प, कथ्य एवं ट्रीटमेंट के स्तर पर अनूठी रही साथ ही आज पढ़ी गई कविताओं के माध्यम से समय का सच हमारे सामने उद्ïघाटित हुआ।
हिन्दी की कवियत्री डॉ. सुलक्षणा दत्ता नें अपनी जानदार प्रस्तुति के माध्यम से ‘किरकिरी सी चुभती हो......./ तुम सोच समझकर कब चलती हो............./हवा तुम महबूब सी हो और तुम गर्म हवा..........तपिश भरी हल्की हो जाती हो’ आदि हवा शृंखला की नव कविताओं के माध्यम से आज के कार्यक्रम का आगाज किया।
इसी क्रम में उर्दू के ख्यातनाम शायर शमीम बीकानेरी नें अपनी बेहतरीन एवं उम्दा शायरी की शानदार प्रस्तुति देकर खचाखच भरी कला दीर्घा में उपस्थित गरिमामय श्रोताओं की वाहवाही लूटी। आपने ‘उसका बदन तो एक हवा का झोंका है....../खुशबु फैलाएगा जिधर से गुजरेगा, उस दिन तु खामोश रहा तब देखेंगे / जिस दिन पानी तेरे सर से गुजरेगा, कब से भटक रहा हूं अंधेरों के शहर में / वो रोशनी दिखा के न जानें किधर गया एवं बेदाग अपने आपको कहते थे वो मगर / जब आईना दिखाया तो चेहरे उतर गये।’
कार्यक्रम के अतिथि कवि श्री डूंगरगढ़ से आए श्याम महर्षि नें राजस्थानी भाषा के मिठास एवं उसकी मठोठ से श्रोताओं को आनंदित किया। आपने अपनी राजस्थानी कविताएं ‘म्हने ठाह नी दिनुगै बा कद ऊठे.....शहर मांय इतरा हुयग्या सांप के साथ-साथ गांव री छोरी, म्है जाणू हूं, रोटी, जीत रो जीमण आदि कविताओं के माध्यम से राजस्थानी की कविताओं का आस्वाद करवाया।
प्रारंभ में सभी का स्वागत करते हुए युवा शायर कासिम बीकानेरी नें ‘साख अर सीख’ की भावी कार्यक्रम योजना बताते हुए सभी का स्वागत किया। इसी क्रम में अतिथि रचनाकार श्याम महर्षि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश युवा पत्रकार एवं नाटककार हरीश बी. शर्मा ने डाला।
कार्यक्रम मे सरल विशारद, मालचन्द तिवाड़ी, सरदार अली पडि़हार, नरपतसिंह सांखला, मधु आचार्य, जाकिर अदीब, महेन्द्र रंगा, डॉ. जगदीश बारहठ, अविनाश व्यास, बी.एल. नवीन, इन्द्रा व्यास, मोहम्मद फारूक, कान्ता चाड़ा, प्रेमनारायण व्यास, रामनरेश सोनी, अमित गोस्वामी, डॉ. कृष्णा आचार्य, श्रीलाल जोशी, प्रमोद शर्मा, असित गोस्वामी, डॉ. गौरीशंकर निमिवाल, कमल नारायण आचार्य, अब्दुल वाहीद अशरफी, संजय पुरोहित, डॉ. अजय जोशी, हरिमोहन जैन, डॉ. तुलसीराम, शिवशंकर भादाणी श्याम सुन्दर हटीला, मुनीन्द्र अग्निहोत्री, देवीशरण शर्मा, अल्लाह बख्श, राजेन्द्र जोशी, असद अली ‘असद’, इंजी. कासम अली, नगेन्द्र किराङू, जगदीश शर्मा, हरीकिशन व्यास, विकास पारीक आदि उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का सफल संचालन हरीश बी.शर्मा ने किया एवं आभार शायर जाकिर अदीब ने ज्ञापित किया।