पिछले तीन वर्षो मे आॅनलाइन खरीददारी परवान चढ़ रही है, पिछले साल बिगमिलियनडे जैसी विराट् आॅनलाइन सेल ने तो उपभोक्ताओं का एक बहुत बड़ा वर्ग अपनी तरफ कर लिया है और इस साल फिर फ्लिपकार्ट, अमेजाॅन, स्नेपडील, इबे, राजबीटूबी और विभिन्न छोटे बड़े ब्राॅड्स के आॅनलानइ स्टोर्स ने अपनी वेब व एप स्टोर्स के जरिये त्यौंहारी छूट प्रस्तावों का ढेर लगा दिया है।
अब हर छोटा बड़ा उत्पाद, लगभग सभी ब्रांण्ड सब कुछ हर साइज, कलर, डिजाइन, तकनीक और नवीनता से भरे इन उत्पादों की खरीददारी करने से खुद को रोकें भी तो भला कैसे? और जब न्यूनतम कीमत, मनचाही वैरायटी और आज की भागदौड़ जिन्दगी मे न कही आने जाने का झंझट और ना सामन ढोने का तकलीफ, उत्पाद सीधा आपके द्वार, तो फिर कौन नही चाहेगा ऐसी खरीददारी करना।
नवीनता के साथ होने वाले इस व्यापार की दुनिया मे लेकिन इन सब के पीछे आज भी यक्ष प्रश्न रहता है कि भेजे जोने वाले उत्पाद की विश्वनियता कितनी है?
इसका सटीक जवाब देना इतना आसान नही है, क्योंकि रिजर्व बैंक द्वारा आर्थिक ट्रांजेक्शन पर विभिनन तरह की नियमावाली लागु कर रखी है तो वहीं व्यापार मंत्रालय के विभिन्न विभागों द्वारा उपभोक्ताओं के पक्ष मे कड़े कानून नियम पालना जरूरी कर रखी है।
लेकिन इसके बावजूद पारम्परिक खुले बाजार की तरह इसमे भी बड़े स्तर धांधलिया स्पष्ट नजर आ रही है। उपभोक्ताओं और आॅनलाइन स्टोर्स संचालक जो विशेष रूप से बाहरी सप्लायर्स के
उत्पाद उपलब्ध करवा रहे है, उनके लिए अभी तक जो बड़ी समस्या उभरकर आई है वह है उत्पादों का नकली होना, पुराने माल को ही नये के तौर पर भेज देना और कई बार तो माल की जगह लकड़ी टूकडे़ /कंकड भेज देना तक शामिल है। इलैक्ट्राॅनिक, जैम्स एण्ड ज्वैलरी क्षेत्र मे तो यह समस्या कुछ ज्यादा ही विकराल है। इलैक्ट्राॅनिक सामानों मे तो ग्रे मार्केट उत्पाद भी धड़ल्ले से बेचे जाते देखे जा सकते है। जहां कम्पनी के अधिकृत विक्रेता आपकों अधिकतम कीमत बेच रहे होते है वहीं उसी कम्पनी प्रोडक्ट को आप आॅनलाइन स्टोर्स मे 40 प्रतिशत की छूट देने के प्रलोभन दिया जाता है। एक तरफ कम्पनीयां अपने अखबारी विज्ञापनों मे स्पष्ट रूप से आॅनलाइन उत्पाद बिक्रि के विरूद्ध ग्राहकों को आॅनलाइन ना खरीदने, तथा विक्रय बाद सेवा न देने तक की सूचना भी देती है जबकि उन्ही कम्पनीयों के उत्पाद सभी आॅनलाइन स्टोर्स पर उपलबध होते है।
यह सब केवल अप्रचलित वेबसाइट के माध्यमों से ही नही बल्कि जानी पहचाने और बड़े वेब स्टोर्स द्वारा भेजे जा रहे माल मे भी ऐसा ही सामना आ रहा है।
इसकी ढेरों शिकायते आप उनकी वेबसाइट पर भी देख सकते हो और कुछ ऐसे ही पोर्टल है जैसे complain.in जिनमे आप किस वेबसाइट पर कौनसी शिकायत है, उसका विवरण मय दस्तावेजी सबूत ट्रांजेक्शन संख्या तक देते है।
लेकिन ग्राहको को इतना डरने की भी जरूरत नही होती है बल्कि थोड़ा जागरूक रहना होगा।
इसके तहत हर उपभोक्ता को आॅनलाइन खरीद करते वक्त यह बाते रखनी होगी की जो प्रोडक्ट आॅनलाइन स्टोर्स मे उपलब्ध करवाया जा रहा है उसक बारे दुसरे खरीददारों का क्या कहना है, उस वेबसाइट के अलावा अन्य वेबसाइट पर उसी स्टोर्स और उत्पाद के बारे क्या लिखा हुआ है। कम्पनी के अधिकृत सर्विस के बारे क्या लिखा है, उत्पाद पसंद ना आने, आॅर्डर किये गये उत्पाद का रंग, साइज चित्र और विवरण के अनुरूप तो है ना, और उसकी रिटर्न पाॅलिसी क्या है?
ऐसे किसी भी प्रश्न का उत्तर अगर ग्राहक के पक्ष मे ना हो तो उपभोक्ता को वह चीज खरीदने से बचना चाहिए।
आपको यह भी देखना चाहिए कि वेब स्टोर्स मे उपलब्ध उत्पाद कौन कम्पनी या सप्लायर्स उपलब्ध करवा रही है, वो कितने वर्षो से आॅनलाइन व्यवसाय मे है, उसका कितना रिव्यू पाॅजीटीव है! अगर उसका रिव्य प्रतिशत 95/98 प्रतिशत से कम हो तो आपको ऐसे विक्रेता से बचना चाहिए।
आपको तीस प्रतिशत छूट से उपर के उत्पादों पर भी कम्पनी द्वारा उस उत्पाद पर दी जाने वाली विक्रय पश्चात अधिकृत सेवाओं की जानकारी देख लेनी चाहिए।
कई बार आपकों कुछ अप्रचलित या नई वेबसाईट पर उत्पाद पंसद आ जाता है, तो उसको खरीदने से पूर्व उस समय भी आपको ध्यान रखते हुए वेब ऐड्रेस मे केवल ीजजच के बजाय ीजजे से जुड़ी वेबसाइट पर ही उत्पाद खरीदना चाहिए।